“इक जाम-ए-जुनूं को लबों से लगाया है, दिल को इक नये ग़म का नशा कराया है, ये कैसी हलचल मची है, महफ़िल में क्या कोई चाक जिगर महफ़िल में आया है” “शायरी इक शरारत भरी शाम है, हर सुख़न इक छलकता हुआ जाम है, जब ये प्याले ग़ज़ल के पिए तो लगा , मयक़दा तो
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